क्या है मैकमोहन रेखा , शिमला समझौता जिसे चीन अब तक नही मानता

चीन एक ऐसा देश जो हर समय किसी न किसी विवाद के कारण हमेशा चर्चा में बना रहता है फिर चाहे वो थल सीमा विवाद हो , जल सीमा विवाद हो, उत्तर कोरिया को गुपचुप तरीके से समर्थन देना हो या फिर Covid 19 जैसी भयानक महामारी हो हर विवाद में चीन का नाम आना अब स्वाभाविक हो गया है , और अभी हाल में ही भारत के साथ ग़लवान घाटी में हुए विवाद के कारण चर्चा में बना हुआ है , आज हम विस्तार से जानेंगे मैकमोहन रेखा और तिब्बत समझौते के बारे में क्यों चीन ये सीमा नही मानता है , आइये जानते है -

क्या है मैकमोहन रेखा ? (What is Mcmahon Line)
इस रेखा का निर्धारण  तत्कालीन ब्रिटिश भारत सरकार में विदेश सचिव रहे सर हेनरी मैकमोहन ने किया था और इन्हीं के नाम पर इसे मैकमोहन रेखा कहा जाता है. इस रेखा की लम्बाई 890 किलोमीटर है। मैकमोहन रेखा, पूर्वी-हिमालय क्षेत्र के चीन-अधिकृत क्षेत्र एवं भारतीय क्षेत्रों के बीच सीमा चिह्नित करती है. यह क्षेत्र अत्यधिक ऊंचाई का पर्वतीय स्थान है। यह रेखा 1914 के शिमला समझौते का परिणाम था जो को भारत और तिब्बत के बीच हुआ था।
हैनरी मैकमोहन

शिमला समझौता क्या है? (Shimla Agreement)

शिमला समझौते के अनुसार मैकमोहन रेखा, भारत और चीन के बीच स्पष्ट सीमा रेखा है। भारत और तिब्बत के प्रतिनिधियों के बीच 1914 में स्पष्ट सीमा निर्धारण के लिए शिमला समझौता हुआ था। इस समय तिब्बत एक स्वतंत्र क्षेत्र था इश्लिए चीन इस समझौते में शामिल नही था। भारत की ओर से ब्रिटिश शासको ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग और तिब्बत के दक्षिणी हिस्से को हिंदुस्तान का हिस्सा माना। इस कारण अरुणाचल प्रदेश का तवांग क्षेत्र भारत का हिस्सा बन गया।
मैकमोहन रेखा का चीन क्यों विरोध करता है?
चीन के अनुसार तिब्बत हमेशा से ही उसका हिस्सा है इसलिए तिब्बत के प्रतिनिधि उसकी मर्जी के बिना कोई भी समझौता नहीं कर सकते हैं. चीन ने 1950 में तिब्बत पर पूरी तरह से अपना कब्जा जमा लिया था. अब चीन न तो मैकमोहन रेखा को मान्यता देता है और न ही उसे स्वीकारता है। चीन यह भी तर्क देता है कि शिमला समझौते में चीन शामिल नहीं था इसलिए शिमला समझौता उसके लिए बाध्य नहीं है. चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्जा करने के बाद ही अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जताना शुरू किया था।
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मैकमोहन रेखा पर भारत का पक्ष:-
भारत का कहना है कि 1914 में जब शिमला समझौता हुआ तब ,  तिब्बत एक कमजोर लेकिन स्वतंत्र देश था, इश्लिए सीमा समझौते के लिए वह स्वतंत्र है अर्थात भारत के अनुसार जब मैकमोहन रेखा खींची गई थी, तब तिब्बत पर चीन का शासन नहीं था । इसलिए मैकमोहन रेखा ही भारत और चीन के बीच स्पष्ट सीमा रेखा है। इसके बाद जब 1950 में तिब्बत ने स्वतंत्र क्षेत्र का अपना दर्जा खो दिया तो यह क्षेत्र भारत के नियंत्रण में आ गया। इस प्रकार तवांग पर चीन का दावा एकदम गलत है। 
मैकमोहन रेखा पर वर्तमान स्थिति 
भारत, मैकमोहन रेखा को मान्यता देता है और इसे भारत और चीन के बीच ‘एक्चुअल लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल (LAC) मानता है जबकि चीन इस मैकमोहन रेखा को मान्यता नहीं देता है. चीन का कहना है कि विवादित क्षेत्र का क्षेत्रफल 2,000 किलोमीटर है जबकि भारत इसे 4,000 किलोमीटर बताता है।
लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) क्या है?
1962 की जंग ख़त्म होने के बाद भारत और चीन के नियंत्रण में जो इलाके रह गए, उसी का बंटवारा है LAC । ये दोनों देशों की आपसी सहमति से तय नहीं हुआ। LAC मैकमोहनसे थोड़ा ऊपर-नीचे है।
चीन आये दिन कोई न कोई विवाद खड़ा करता रहता है जिसके कारण उसे भूमाफिया भी कहा जाता है । चीन  भारत के साथ हुए पंचशील समझौते को भी नही मानता है।
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